Monday 25 October 2010

जिन्दगी-एक पूर्णता

मनुश्य इस पृथ्वी का सबसे बुद्धिमान और सुन्दर प्राणी है । मानव देह ईश्वर कि श्रेष्ट रचना है । महाभारत में व्यास जी ने लिखा है - ब्रम्हा जी ने तप किया तब जाकर ऐसे प्राणी कि रचना कर सके जो सर्वगुणों से परिपूर्ण हुआ । जो सारी पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कर सकता था । जो महान आदर्श बन सकता था । मानव ईश्वर कि श्रेष्ठ रचना है इसे बना कर वो भी संतुष्ट हुआ । आज का मानव क्या नहीं कर सकता । आज का इंसान अपनी बुद्धि के बल पर चाँद और मंगल पर बसने कि तैयारी कर रहा है । पर अभी बहुत कुछ करना है आज भी पर्याप्त शिक्षा नहीं है । बहुत से लोग अपनी अशिक्षा के कारण तमान प्रकार के कष्टों से जूझतें हैं । यह सच है ,एक भोगा हुआ सच कि अचानक अगर कोई संकट आ जाय तो घबराना नहीं चाहिए बड़े ही ठन्डे दिमाग से उस संकट से निकलने का उपाय खोजना चाहिए । अचानक कोई संकट आने पर हम घबरा जातें हैं और गम में डूब जाते हैं । जब हम उदासी में डूब जातें हैं तो हमारी रही -सही सूझ भी काम नहीं करती । यह बात पूरी तरह सच है कि संकट के समय अगर आप दुःख में डूब कर बैठ गए तो कुछ भी नहीं हासिल होगा । अपना दुःख लेकर बैठ जाने से तो आया हुआ संकट नहीं टलेगा और आप भी उससे छुटकारा नहीं पा सकेंगे । इसलिए बड़े धैर्य के साथ पहले अपने किसी सच्चे मित्र को बताएं उसकी राय ले और अगर आपके पास ऐसा कोई नहीं है तो अपनी ज्ञानेन्द्रियों को जगाएं खुद उस संकट से निकलने के उपाय खोजे । आप यह सोचे कि हमारे पास क्या बचा है हम क्या करें कि इस कष्ट से मुक्त हो । अपनी सुरक्षा कैसे होगी और यह भी याद रखे कि आपके सोचने कि दिशा गलत न हो ,सकारात्मक हो । सकारात्मक सोच में एक शक्ति होती है ,उर्जा होती है । हालात बहुत बिगड़े हो तब भी उससे उबरने कि राह सकारात्मक तरीके से ही मिलेगी । जितना बड़ा संकट होगा उतने ही बड़े धैर्य कि जरुरत होगी और उतने ही ठन्डे दिमाग से सोचना भी पड़ेगा । अगर आप में हमेशा कोसने कि आदत है ,अपनी गलती को नजरअंदाज करने या छुपाने कि आदत है तो इस पर ध्यान दे यह आदत धीरे -धीरे आपको खोखला कर देगी । आप एक कमजोर इंसान बन जायेंगे । यह आदत आपको वास्तविकता से दूर ले जायगी ।



स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है -उठो ,निडर बनो और सबकी जिम्मेदारी अपने कंधे पर लो । जिस क्षण हम दूसरों को कोसतें हैं उस क्षण हम अपनी जिम्मेदारी भूल रहे होतें हैं । अपनी जीवन यात्रा में अपने व्यक्तित्व को ऊँचा रखो ,सोच को सार्थक बनाओ ,बुराइयों को त्याग दो । अप्रत्यक्ष दोषों को भी जैसे अकारण ईर्ष्या से बचो । अकारण अगर कोई आपसे उलझता है तो भी उसे जब तक हो सके टालते जाओ । कोई आपसे बहुत बैर करता है तो भी हंस कर उसे कह दो आप बड़े हो हम छोटे । जीवन में ऐसा होता है कभी -कभी बिना कारण कोई आफत बन कर आ जाता है तो आप अपनी विनम्रता को न छोड़े आपकी राह आसान होती जायगी । ये तो है घर ,समाज और अपनी दुनिया कि बात । इसके अलावा हमारा देश और इसके क़ानून जिसके अन्दर हमारा जीवन बनता है या बिगड़ता है । हमारा जीवन इस देश के क़ानून से बंधा होता हैं । अतः इस देश के कानूनविदों कि जिम्मेदारी बनती हैं कि देश कि जनता किसी ऐसे क़ानून से पीड़ित तो नहीं जो इनके द्वारा बने हैं ।



२७/३/११



हमारे देश में घरेलू हिंसा पर भी क़ानून बना है उसकी एक झलक मैं यहाँ देती हूँ । इसमें केवल उनकी सुनी जाती है जो वधु बनकर आई हैं । ऐसा लगता हैं कि शादी करके माता-पिता इसलिए लातें हैं कि अब हम इनको परेशान करे फिर ये रिपोर्ट लिखायें तब हम सब अपना सब कुछ छोड़ कर जेल चलें । मेरे कुछ सवाल हैं -क्या सब वधु अच्छी ही होती है ?



-क्या ये अत्त्याचार ,हिंसा ,संपत्ति के लिए कलह ,उलटे -पुल्टे सम्बन्ध नहीं रखती ?



-क्या ये अपने पति और अन्य घरवालो कि गैर मौजूदगी में आपत्ति जनक काम नहीं करतीं और कोई रोके तो हिंसा होती है ।



- वधु जहां आती है वो घर किसी ने बनाया होता है आते ही इनका हो गया अन्य घर के लोग कबाड़ हो गए । क्यों ?-



- वृद्ध माँ -पिता ,वधु के आने के बाद वेचारे बन जाते है वे हरदम डरतें रहते है कि कही यह मुझे जेल न भेज दे ।





एक कानून बना है -दहेज़ पर -



इस कानून में सबसे बड़ी कमी यह है कि -लड़की के कहने भर से ही यह मान लिया जाता है -क्यों ?



- यह भी नहीं सोचा जाता कि चलो जांच तो कर ले क्या सही है ।



-लडकी वाला भी जानता है कि दहेज़ पर क़ानून बना फिर वो क्यों दे । क्या दो चार उपहार ही दहेज़ बन जाते है । जिसको लेकर इतना बड़ा बवाल बनता है कि -पुलिस आती है ।



-जब लड़का और लड़की को बराबर माना है क़ानून ने ,लड़का अपने पूर्वज कि संपत्ति का हकदार है तो उसी जगह जब बेटी कि शादी में बाप ने दो चार डिब्बे ,एकाध और सामान दे दिया तो उसकी कीमत लाखों में लिखा कर दहेज़ बना दिया ,लड़के के घर वालो से सौदा करतें हैं कि इतना दो नहीं तो कई तरीके है मेरे पास लेने के ।






-लड़की वाले सरे आम जीवन को ,इंसानियत को ,मानवता को खिलवाड़ बनाते हैं और यह सब करने का अधिकार हमारे देश के कानून ने दिया है ।

इसी तरह दहेज़ के कानून में ९०% लोग फसाए जातें हैं । झूठे केस में फ़साने वालों को आज तक किसी को भी सजा नहीं मिली । मैं गवाह हूँ कई ऐसे परिवारों कि बदहाली का ,जिसमे वृद्ध और बच्चे यहाँ तक कि विवाहित लड़कियों को भी पुलिस जेल में ले जाती है । एक परिवार जो समाज में अपनी सहृदयता ,सदाशयता ,सज्जनता के लिए जाना जाता है ,जिनके परिवार कि स्त्रियाँ कभी अकेले बाजार भी नहीं निकली उन पर क्या गुजरती होगी जब उनको जेल जाना पड़ता होगा ।





मैंने ऐसे घर देखे हैं -जब शादी के एक माह बाद ही लड़की कहने अपने परिवार से अलग हो ,उनसे सम्बन्ध न रखो नही तो तुमको दहेज़ में फंसा कर तुम्हारी नौकरी भी ले लूंगी । यह वाकया मेरे पड़ोस का है । मेरे सामने दो ऐसे परिवार है जो गिनती के दिन ही रह पाए । क्या कहा जाय इसे ? दहेज़ क़ानून में एक धारा है - ४९८ A/४०६ IPc इसमें आप चाहे जो आरोप लगा ले उन नर पिशाचों के हाथों में हैं जो मानवता पर सीधे प्रहार करतें हैं । अपना पाप दूसरे के गले में बाँध देते है क़ानून का सहारा लेकर ।






-क्या पुलिस को यह अधिकार होता है कि बिना किसी सबूत के ,या किसी एक के कह्देने से किसी को भी पकड़ ले ? -क्या यह गलत लोगो को बढ़ावा देना नहीं है ? -पुलीस आफिसर को यह बताना चाहिए कि किस अधिकार से वो ऐसा करती है ? -लड़की के घर के लोग मजे लेकर क़ानून का तमाशा तो देखतें ही हैं ऊपर से धन भी मिलता है उनको इसको क्यों नहीं देखा जाता कि लड़की किस तरह कि है ? -लड़के के घर के बुजुर्ग ,विवाहित और अविवाहित लड़कियों को क्यों पकड़ा जाता है ?उनका भी एक सामाजिक जीवन होता है उसे क्यों मिटाया जाता है ? -जो लोग किसी तरह बच गए पुलीस से वो घर छोड़ कर दर -दर भटकने को मजबूर होते है एक अपराधी कि तरह। जिस परिवार का सम्मान ले लिया जाता है बिना वजह के किसी के कहने मात्र से वो इस व्यवस्था से घृणा ही करेगा ।






ऐसे भी घर देखे मैंने जहां एक से दो माह के अन्दर ही दहेज़ का केस करने कि धमकी दी गई । जिस लड़की ने अभी सारे घर के लोगों को देखा भी नहीं वे भी अपना हिस्सा मांगती हैं और लड़के पर दबाव बनाती हैं कि माता -पिता और घर वालो को अलग करो ।






इस कानून कि कमियां






१-बिना किसी जांच या सबूत के पूरे परिवार को फसाया जा सकता है ।



२-क्या मजाक है जो बाहर रहतें हैं उनको लिखाया जाता है कि ये साजिश में शामिल थे । इस तरह कि ब्यवस्था अगर अपराधियों के लिए भी होती तो आज हमारा समाज कितना निर्मल होता ,बड़े -बड़े अपराधी के घरवालों को कुछ नहीं कहा जा सकता मगर एक लड़की चाहे जिसे कह दे वो तलब होगा ।



३-इस क़ानून से कभी भला हुआ हो ये मैंने अपने आस -पास तो नहीं देखा । जिनको जो करना होता करतें है और बचना भी जानते है । इसमें केवल सीधे -सादे लोग ही फंसते हैं और फंसाए जाते है ।



४-क्या ये कानून (४९८अ/४०६ आई पि सी )इनकी जो प्रक्रिया है वो हमारे मौलिक अधिकारों का हनन नहीं करती ? एक तरफ बुजुर्गो का सम्मान करती है सरकार दूसरी तरफ बिना किसी सबूत के अपराधी बना देती है । समाज में उसके लिए हजारो सवाल खड़े होतें हैं ।



५-कई लोग पूछ्तें हैं लड़की झूठ क्यों बोलेगी यह बात लड़की से पूछना चाहिए कि जिन माता -पिता और स्वजनों ने तुमको सम्मान के साथ सब कुछ दिया पूरा -पूरा संसार दिया उनको तुम क्यों घर से निकालना चाहती हो ?क्यों छल -कपट ,झूट -फरेब का खेल रचती हो । क्यों इतर सम्बन्ध बनाती हो ?



६-यह कानून परिवार को तोड़ने और बिमारी देने का कारण है । घर कि सुख -शान्ति छीन कर पैसे कि भी मांग करतें हैं लड़की वाले क्यों ?



७-मैंने जितने भी केस देखे दहेज़ सबके पीछे यही कारण था "पैसा "। पुलिस को यह अधिकार होना चाहिए कि -पहले पुष्टि करें कि क्या दिया गया है । दहेज़ देना भी जुर्म है तो पहले उनके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए । क्यों नहीं होता ।



८-वधु जिसके आने से मंगल होना चाहिए । विवाह में ये वचन लेती है कि मैं सबकी बन के रहूंगी वे अपना वर्चस्व कायम करने के लिए इस क़ानून का सहारा लेती और पैसे कि लालच में उसके घर वाले भी उसमे शामिल होतें है ।


९-हिन्दुस्तान जो प्रसिद्ध अखबार है उसमे एक कालम -'बीबी कि बेवफाई से आहत अधिवक्ता ने दी जान '। आगे लिखा है उसके अवैध सम्बन्ध और नशे कि लत के कारण लड़का अपनी जान ले लिया । क्या है क़ानून ?


१०-सच को बताने के लिए इतना लड़ना क्यों पड़ता है ?सच को सबूत चाहिए झूट को क्यों नहीं ?मनमाना आरोप लगा कर किसी को तबाह कर दे क्यों ? आलोक नाम का यह अधिवक्ता कितना मजबूर रहा होगा जब नहीं लड़ सका तो दुनिया ही छोड़ चला ।

१३/११/१०/को हिन्दुस्तान में यह खबर छपी है । यह जिला प्रताप गढ़ कि घटना है । यह लड़की किसी और के बच्चे की माँ बनने वाली थी पति से केवल धन और मान चाहिए था । अगर यह क़ानून एक तरफ़ा और इतना बेरहम न होता तो इसका परिणाम कुछ और होता । लड़की अगर इस तरह कि हो तो भी उसे अधिकार है दहेज़ में फ़साने का । ये बात और है कि लड़ते -लड़ते एक दिन न्याय मिलेगा मगर तब तक जिंदगी भटक चुकी होती है तमाम तरह कि परेशानियों को झेलते हुए आदमी और घर वाले हताश हो चुके होते है । किसी विद्वान् जज ने ये कहा था कि जब रिश्ते न निभ सके तो अलग हो जाना बेहतर है ,पर इस पर एक और बात पर ध्यान होना चाहिए कि किसी बेगुनाह का जीवन न बिगड़े । इतनी बड़ी नेमत है यह जिन्दगी और जब वो किसी कुलटा के हाथो बर्बाद हो तो इसकी रक्षा करने वाला कोई ऐसा उपाय अवश्य होना चाहिए । दहेज़ में ३२८ भी लग जाता है , इसमें लिखा देतें है कि लड़की को जहर दिया गया ,लिखने वाले भी कुछ पैसे कि खातिर किसी के जीवन को खिलवाड़ बनाते हैं ,डाक्टर भी बिक जाते है । वो शपथ लेकर आते है मानवता की सेवा करने के लिए । लड़की मस्त घूमती है गुलछर्रे उडाती है लड़के और उसके घरवाले जेल में पल -पल मरते हैं । कैसा खेल है ये ? यह मूर्खता से भरा हुआ एकतरफा क़ानून है





शादी में कुछ भी माँगना गलत है । लेकिन यह भी गलत है कि इस कानून को हथियार कि तरह इस्तेमाल करके पूरे घरवालों को नाकों चने चबाने पर मजबूर करदिया जाय । बात कैसी भी हो ,वजह कोई भी हो ,हजार अवगुण से भरी लड़की भी "दहेज " की रिपोर्ट तुरत लिखाने पहुँच जाती है । क्यों कि जब वो जान जाती है कि अब मेरे गुण सामने आकर रहेंगे तो उसे अपने बचाव और लाभ का यही एक रास्ता दीखता है ।





-ये लड़की वाले इस क़ानून कि खामियों के कारण ही मान -सम्मान कि परवाह किये बिना ,इसकी परवाह किये बिना कि परिणाम क्या हो सकता हैं ?किसी को कितनी पीड़ा मिल सकती है सिर्फ पैसे के कारण और इस कारण कि भारी तो मैं पडूंगा ही तुरत यह कदम उठातें हैं ।



-एक से दो माह के बीच में ही दहेज़ में फंसा देना ,क्या आशय निकलता है । जबकि नयी बहु को कुछ दिन तक कोई काम नहीं करने दिया जाता तो प्रताड़ना का सवाल कहाँ उठता है ,क्या अर्थ है इसका ?



- इस क़ानून के दुरुपयोग से समाज का अहित हो रहा है ।


-परिवार टूट रहें हैं । वृद्धों और बुजुर्गों का जीना दूभर हो रहा है ।


-कई बार तो लोग आत्महत्या तक कर लेतें हैं ।


-इस क़ानून में परिवर्तन कि सख्त जरुरत हैं ताकि एकतरफा अन्याय और ब्यर्थ का धन मानव के सुन्दर जीवन को बर्बाद होने से रोका जा सके ।


-कुछ ऐसा होना चाहिए कि अगर एक पक्ष को साथ रहने में जीना मुश्किल लग रहा है तो आराम से जाय पर किसी के मान -सम्मान को मिटाने का अधिकार किसी को भी नहीं होना चाहिए । किसी को भी नहीं ।


-बना किसी ठोस आधार के गिरफ्तारी न्यायोचित नहीं है ।


-हरेक मामले में पहले घटना हुई यह जानकार ही पुलिस पकडती है दहेज़ कि धारा में ऐसा क्यों नहीं है ?
कुछ घर ऐसे हैं जहां महिलायें बाजार नहीं निकलती है ,कभी कही जाना हुआ तो घर के पुरुष सदस्य साथ रहतें हैं उन महिला सदस्यों को जब पुलिस बिना किसी गुनाह के जेल ले जाती है तो जीवन भर कि पीड़ा झेलनी पड़ती है । अंत में मैं यह कहना चाहती हूँ कि हर केस दहेज़ का नहीं होता । वे लडकिया जो हर बात पर अधिकार के साथ घरवालों को घुटन कि जिन्दगी जीने को बाध्य करती है और विरोध होने पर इस हथियार का इस्तेमाल करती हैं उनकी सजा का भी विधान होना चाहिए ,उनके कर्तब्यों कि व्याक्ख्या होनी चाहिए । मुझे अपने देश पर ,संविधान पर गर्व है । दुनिया का सबसे अच्छा संविधान हमारा है । हमारा क़ानून कहता है किसी भी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए चाहे उसके बदले कई दोषी छूट जायं । पर मेरा दावा है कि दहेज़ का जो क़ानून बना है वह बेजा इस्तेमाल हो रहा है ,जीवन घुट रहा है अतः इस हथियार का बेगुनाहों और सीधे लोगों पर वार न हो । जीवन कि पूर्णता कि बेला में कोई ग्रहण न लगे ।

-दहेज़ के क़ानून में इतना परिवर्तन अवश्य होना चाहिए कि किसी निर्दोष परिवार का जीवन शर्मनाक न बने ।

इस क़ानून में कुछ परिवर्तन होना ही चाहिए ताकि निर्दोषों को कुछ सुकून मिले -


१-रिश्ते अगर नहीं बन रहे ,नहीं निभ रहे हैं तो अलग होने कि आजादी तुरत मिलनी चाहिए ।

२-जिस तरह पुरुष को बाध्य किया जाता है कि -खर्चा दे ,चाहे जिस कीमत पर उसके साथ दे उसी तरह लड़कियों के लिए कोई क़ानून बने ,उनका भी कोई दायरा निश्चित किया जाय । परिवार कि इज्जत को सड़क पर लाने का हक़ किसी को नहीं होना चाहिए ।
३-सच और झूट के फर्क का कोई आधार नहीं बना है । एक तरफ़ा नहीं होना चाहिए ।
४-लड़की अगर चरित्र से गिरी है तो तुरत उसे त्यागने कि आजादी मिलनी चाहिए ताकि लड़के कि जान -माल और घर वालो की सुरक्षा हो सके और वह भी जहां जाना चाहे जाय ।
५-दहेज़ में माता -पिता तक ही नहीं जो रिश्तेदार दूर रहते हैं उनको भी लिखा दिया जाता है । एक घर में रहने के कारण घरवाले तक तो ठीक भी है पर जो दूर रहतें है वे भी आते है लड़की से मांगने यह कितना हास्यास्पद है ।
६-यह क़ानून केवल फ़साने और पैसा ऐठने के काम आता है ,घर को तोड़ कर जीवन को हताश करता है इसके अंधेपन पर बहुत जल्द कुछ होना चाहिए ।

७-पुरुष कितना मजबूर होता है अपनी आफत के साथ रहने के लिए ।


जीवन का लक्ष्य कुछ और होना चाहिए पर होना पड़ता है कुछ और न जाने कितने लोग अनायास परेशान होते हैं । कल मैंने अपने शहर में एक परिवार को परेशान देखा उनके दूर के रिश्ते में दहेज़ कि घटना हुई उसमे इनका भी नाम है । कितना अधिकार है इन अमर्यादित लड़कियों को जिसको चाहे लपेट ले ।

जो लोग वधु को मार देतें हैं या किसी प्रकार का गलत आचरण होता है उनको सजा जरूर मिलनी चाहिए । पर देखा गया है कि ऐसे मामले बहुत कम होतें हैं । लेकिन जब दहेज़ का आरोप बदनीयती के कारण लगाया जाता है तो सजा लड़की को भी मिलनी चाहिए ।
आज तक ऐसी सजा किसी को नहीं मिली पर रिपोर्ट बताती है कि ९०%इस तरह के झूठे केस दर्ज कराये जातें हैं ।
मुझे अपने देश पर गर्व है । अपने देश के संविधान का बहुत सम्मान करती हूँ । पर कुछ क़ानून ऐसे हैं जिसे हथियार कि तरह प्रयोग करके बेगुनाहों को बहुत तकलीफ दी जाती है । इसमें कोई शक नहीं है कि चालाक लोग ही इसका दुरुपयोग करतें हैं ।
क्या होना चाहिए -
इस क़ानून में इतना परिवर्तन अवश्य हो को लड़के और उसके माता-पिता ,छोटे भाई-बहन धूर्त और चालाक लड़की और उसके घर वालों के चंगुल में फसने से खुद को बचा सके ।
समाज में सम्मान पाने वाला जब किसी फरेबी के जाल में आ जाता है तो वह बेहद मानसिक पीड़ा के दौर से गुजरता है । तकलीफ तब अधिक होती है जब इसे क़ानून का सहारा भी नहीं मिलता ।

मैं इस ब्लॉग के माध्यम से उन माननीयों का ध्यान खीचना चाहती हूँ ,चाहती हूँ कि इस धारा में बदलाव के लिए आवाज उठायें ।